
संघ विचारक
जब पूरी दुनिया महिलाओं को बराबरी की लड़ाई के लिए झूझते देख रही थी, सनातन धर्म तब से नारी को देवी, जगत जननी और शक्ति मानता आ रहा है। यहाँ नारी कोई अबला नहीं, बल्कि “शक्ति स्वरूपा” है — वही शक्ति जिससे त्रिमूर्ति भी संचालित होते हैं।
शक्ति के तीन रूप: देवी, जननी और ज्ञान
सनातन में स्त्री को केवल गृहिणी या माता तक सीमित नहीं किया गया। वह सरस्वती बनकर ज्ञान देती है, लक्ष्मी बनकर समृद्धि लाती है और काली/दुर्गा बनकर राक्षसों का नाश करती है। यह दृष्टिकोण दिखाता है कि नारी कोई ‘कमज़ोर जेंडर’ नहीं, बल्कि Power Personified है।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” यानी जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
सनातन के ग्रंथों में नारी की दिव्यता
वेदों में स्त्री ऋग्वेद से लेकर उपनिषद तक स्त्रियाँ ऋषि, कवयित्री और दार्शनिक रही हैं। रामायण/महाभारत में सीता, द्रौपदी, कुंती, गार्गी — हर एक ने धर्म और नारी शक्ति को redefine किया। नवरात्र, दुर्गा सप्तशती, आदि में स्त्री की पूजा शक्ति के रूप में की जाती है।

आज की दुनिया में सनातन विचार की relevance
जहाँ आज भी कई सभ्यताएं महिलाओं को सेकेंडरी समझती हैं, सनातन दर्शन ये कहता है कि सृष्टि की उत्पत्ति ही नारी तत्व से हुई है। Gender Equality की जो बात आज की नारीवाद (feminism) कर रहा है, वो हजारों साल पहले सनातन धर्म ने दर्शन में स्थापित कर दी थी।
सनातन धर्म में नारी को केवल सम्मान नहीं, आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम माना गया है। यह सिर्फ धर्म नहीं, एक दृष्टिकोण (philosophy) है — जो हर युग में प्रासंगिक है।
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